उत्तराखंड में शिक्षा की स्थिति दशकों से चुनौतीपूर्ण रही है। राज्य के दूर-दराज के इलाकों में कई ऐसे सरकारी स्कूल हैं जहाँ शिक्षकों की नियुक्ति मुश्किल, परिवहन सुविधाएँ नाकाफी और बुनियादी संसाधनों की कमी शिक्षा के स्तर को गिरा रही है। परिणामस्वरूप, छात्र जल्द ही पढ़ाई से विमुख हो रहे हैं और स्थानीय समुदाय का भरोसा टूटता जा रहा है।
इसी समस्या का समाधान निकालते हुए प्रदेश सरकार ने एक अनूठा कदम उठाया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत की देखरेख में 550 चुनिंदा सरकारी विद्यालयों को उद्योगपतियों और प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच गोद लेने का समझौता हुआ है। इस पहल के तहत निजी क्षेत्र की वित्तीय सहयोग, आधुनिक शिक्षण साधन और इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार पर ध्यान दिया जाएगा।
मेरी नजर में यह मॉडल पारंपरिक राजकोषीय सहयोग से कहीं अधिक परिणामदायी साबित हो सकता है, बशर्ते पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो। उद्योगपति यदि तकनीकी प्रशिक्षण, लाइब्रेरी अपडेट और डिजिटल शिक्षण प्लेटफॉर्म पर निवेश करें, तो बच्चों के सीखने के 환경 में तुरंत सुधार दिखेगा। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि शिक्षा की गुणवत्ता निजी फायदे से आगे हो और सरकारी निगरानी बनी रहे।
दूसरी ओर, प्रवासी उत्तराखंडी जो अपने पैतृक गांवों के विकास से जुड़ना चाहते हैं, वे इस पहल से भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से जुड़ सकेंगे। इससे प्रदेश में आत्मनिर्भरता के भाव को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय युवा भी प्रेरित होंगे। हालांकि, लेन-देन की स्पष्ट रूपरेखा (SOP) बनाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि संसाधनों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित हो सके।
समापन में कहा जा सकता है कि यह परियोजना अगर सुचारू रूप से लागू हुई, तो पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा की दिशा बदल सकती है। सिर्फ दीवारों और बैठकों तक सीमित न रहकर, इस साझेदारी में समुदाय, शिक्षक और छात्र मिलकर सकारात्मक बदलाव का आधार रखेंगे। इससे उत्तराखंड की स्कूली शिक्षा को नई पहचान मिलेगी और आने वाली पीढ़ियाँ बेहतर भविष्य की उम्मीद से बढ़ेंगी।

