अमेरिका में H-1B वर्कर वीजा को लेकर हाल ही में हुई TeamBlind सर्वे ने एक बार फिर चर्चा का तापमान बढ़ा दिया है। हजारों टेक प्रोफेशनल्स ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस प्रोग्राम को समाप्त करने की आवाज उठाई है। यह सर्वे बताता है कि कैसे स्थानीय कामगारों के बीच नौकरी की सुरक्षा और विदेशी प्रतिभा के बीच संतुलन को लेकर अनबन गहराती जा रही है।
सर्वे के नतीजों में लगभग आधे से अधिक प्रतिभागियों ने H-1B वीजा को काल्पनिक बोझ बताया और इसे खत्म किए जाने की मांग की। उनका तर्क है कि इससे मौजूदा बेरोजगारी दर को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और अमेरिकी युवाओं को अधिक अवसर मिलेंगे। वहीं, कुछ ने वीजा प्रणाली में पारदर्शिता और नियमों की कड़ाई बढ़ाने की वकालत की है, ताकि दुरुपयोग को रोका जा सके।
इस बहस के केंद्र में आर्थिक दृष्टिकोण भी है। तकनीकी उद्योग में H-1B वर्कर्स का योगदान बड़े पैमाने पर देखा गया है, खासकर स्टार्टअप और आईटी सेक्टर में। इनके बिना कई कंपनियों को विशेषज्ञता की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिससे नवाचार और ग्लोबल प्रतिस्पर्धा में कमी आ सकती है। फिर भी, आलोचक कहते हैं कि इसकी भरपाई घरेलू प्रतिभा से हो सकती है, बशर्ते शिक्षा प्रणाली और स्किल ट्रेनिंग को मजबूती दी जाए।
मेरी नजर में समस्या का निवारण केवल वीजा रद्द करने या पूरी खुली छूट देने में नहीं है, बल्कि एक सुविचारित मिडवे पथ तलाशने में है। अमेरिका को यह देखना होगा कि किस तरह से विदेशी विशेषज्ञों के अनुभव से देश को फायदा पहुंचे और साथ ही स्थानीय कामगारों को भी संरक्षित किया जाए। नए रोजगार कानून, रेजिडेंसी स्कीम और नियमित ऑडिट्स एक संतुलित समाधान हो सकते हैं।
निष्कर्षतः, H-1B वीजा को लेकर चल रही बहस सिर्फ एक इमिग्रेशन पॉलिसी का मुद्दा नहीं, बल्कि आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और वैश्वीकरण के बीच संतुलन स्थापित करने का आइना भी है। फैसला चाहे जैसा भी हो, उसे भारत और अमेरिका दोनों के हित में देखना होगा ताकि वैश्विक श्रम बाजार में नई संभावनाएं खुलें और स्थानीय स्तर पर सुरक्षा बनी रहे।

