अमेरिका में उच्च तकनीकी कामकाज़ के लिए H-1B वीजा वर्षों से मुख्य द्वार रहा है। वह पारिवारिक सपनों और करियर की बुलंदी को एक साथ संभालने का अवसर प्रदान करता है। हाल के समय में जब विदेशियों को काम के लिए आने पर सवाल उठाने की राजनीति तेज हुई है, तब इस वीजा को लेकर बहस और तीखी हुई है।
रिपब्लिकन सांसद एरिक श्मिट ने इस बहस को नई गति दी है। उनका तर्क है कि बड़ी संख्या में विदेशी पासपोर्टधारी अमेरिकी कामगारों के अवसर छीन रहे हैं। उनका कहना है कि कंपनियां सस्ते श्रमिक पाकर घरेलू प्रतिभा को दरकिनार कर रही हैं, जिससे अमेरिकी बेरोजगारी के आंकड़े बढ़ रहे हैं।
दूसरी ओर, आईटी और इंजीनियरिंग सेक्टर में काम करने वाले कई H-1B वीजा होल्डर्स का मानना है कि वे सीमित समय के लिए आते हैं, पैटेंट और प्रोजेक्ट्स में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। उनके समर्थन में तर्क है कि ये वीजा अमेरिका की ग्लोबल इनोवेशन लीडरशिप को बचाए रखते हैं और नई तकनीक विकसित करने में सहायक होते हैं।
मेरी नजर में समस्या का समाधान कट्टर प्रतिबंध में नहीं, बल्कि पारदर्शी नियमावली और क़ानूनी समीक्षा में है। कंपनियों को पहले स्थानीय कुशल कामगारों को प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर विदेशी विशेषज्ञों को लचीलापन देना भी ज़रूरी है। इसके साथ ही फिटनेस टेस्ट, वेतनमान और कार्यकाल की सीमाएँ तय की जानी चाहिए।
निष्कर्षतः, H-1B वीजा विवाद केवल विदेशी वर्कर्स और अमेरिकी कामगारों के बीच टकराव नहीं है, बल्कि आर्थिक नीति, वैश्विक प्रतिस्पर्धा और देश की तकनीकी स्थिरता का सवाल है। संतुलित दृष्टिकोण और दोतरफा संवाद से ही इस बहस का स्वस्थ समाधान निकाला जा सकता है।

