अमेरिका में H-1B वीजा विवादों के घेरे में फिर उभर आया है, जब एक भारतीय डेटा साइंटिस्ट को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इस घटना के बाद उसके अमेरिकी मित्र ने तड़क-भड़क कर सरकार से कहा कि यह पॉलिसी बिल्कुल बेतुकी है और इसमें तत्काल सुधार की जरूरत है।
H-1B वीजा मुख्य रूप से तकनीकी कौशल वाले विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में काम करने का अवसर देता है, लेकिन हाल के वर्षों में इस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। विरोधियों का तर्क है कि अमेरिकी मजदूरों को नुकसान पहुंच रहा है, जबकि समर्थक इसे वैश्विक प्रतिभा के आदान-प्रदान का जरिया मानते हैं।
मेरी नजर में नीतिगत बदलाव तभी सार्थक होंगे जब आवेदनों में पारदर्शिता बढ़े और तकनीकी योग्यता का आकलन सख्ती से हो। डेटा साइंस, मशीन लर्निंग जैसे क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां कुशल भारतीय वर्कर्स की डिमांड भी उतनी ही तेज़ है। नीति निर्माताओं को इस असंतुलन को समझकर हकाधिकार आधारित मेरिट प्रणाली लानी चाहिए।
संभावित सुधारों में कैप को बढ़ाना, प्रोसेसिंग समय घटाना और उपचारात्मक उपाय जोड़ना शामिल हो सकता है। साथ ही, कंपनियों को स्थानीय प्रशिक्षण प्रोग्राम्स शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि अमेरिकी और विदेशी दोनों श्रमिकों को एक साथ आगे बढ़ने का मौका मिले। यह व्यवसायिक और सामाजिक दृष्टि से संतुलन बनाए रखेगा।
निष्कर्षत: H-1B वीजा के विवाद का समाधान केवल भावनात्मक बहस से नहीं निकलेगा, बल्कि ठोस तथ्यों पर आधारित सुधारात्मक कदमों से ही संभव होगा। नीति निर्माता, नियोक्ता और आवेदक मिलकर एक ऐसी प्रणाली तैयार करें जो कौशल को सराहे, रोजगार सृजित करे और दोनों देशों के बीच विश्वास को बनाए रखे।

