डूसू चुनाव 2025 की तैयारियाँ अपने अंतिम चरण में हैं। 18 सितंबर को मतदान और 19 सितंबर को मतगणना की प्रक्रिया में 2.7 लाख से अधिक छात्र-छात्राएं अपनी राय दर्ज करेंगे। गुरुवार को विभिन्न छात्र संगठन—NSUI, ABVP और अन्य—ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, जिससे पूरे कैंपस में हलचल तेज हो गई है।
NSUI के भीतर हाल ही में जमीनी स्तर पर उथल-पुथल देखने को मिली है। ‘कन्हैया कुमार’ के करीबी उम्मीदवारों के समर्थन में एक धड़ा खड़ा हुआ है, जबकि परंपरागत पारिवारिक समीकरण वाले नेताओं का दूसरा मोर्चा सक्रिय है। इस बंटवारे ने संगठन में लड़खड़ाहट की झलक दिखा दी है।
मेरी नज़र में, इस विवाद का सबसे बड़ा असर NSUI की चुनावी गतिविधियों पर पड़ेगा। नए चेहरे और कन्हैया कुमार के विचारधारात्मक असर ने युवा वर्ग में उत्साह तो बढ़ाया है, पर साथ ही संगठन के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल भी हुई है। यह टकराव आगे चलकर वोट बैंक के एकीकरण या विभाजन का कारण बन सकता है।
छात्र राजनीति में ऐसे धड़ों का उभरना परंपरागत समीकरणों को चुनौती देता है। छात्र संगठन यदि आपसी मतभेदों से पार पा कर एकजुट होना सीख ले तो नेतृत्व क्षमता मजबूत होगी। वहीं इस विभाजन ने यह भी दर्शाया कि आज का छात्र अपने अधिकारों के लिए ज्यादा सजग और आवाज बुलंद करना चाहता है।
निष्कर्षतः, NSUI में चल रहा आंतरिक संघर्ष छात्र राजनीति के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य का संकेत भी है। यह उथल-पुथल संगठन को नींव से दोबारा जांचने का अवसर दे रही है और नए नेतृत्व के उदय की राह खोल सकती है। डूसू चुनाव के परिणाम कैसा माहौल तैयार करते हैं, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

