अंग्रेजी माध्यम में उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भारतीय छात्रों की पहली पसंद बन गए हैं। इन देशों की सिंपल भाषा, ग्लोबल रेप्यूटेशन और रोजगार की संभावनाएं मिलकर सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बनाती हैं। लेकिन स्टडी खत्म होने के बाद अपनी पढ़ाई को जॉब में बदलने के लिए पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा कितना मददगार साबित होता है, यह जानना बेहद जरूरी है।
ब्रिटेन में ग्रैजुएट वीजा योजना छात्रों को दो साल तक काम करने का ऑप्शन देती है और डॉक्टरेट करने वालों के लिए यह अवधि तीन साल तक बढ़ जाती है। देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई से मिलने वाला अनुभव और लंदन जैसी सिटी में उच्च सैलरी दोनों मिलकर एक मजबूत प्रोफेशनल प्रोफ़ाइल तैयार करते हैं। हालांकि वीजा की अवधि सीमित है, लेकिन ब्रिटिश वर्क कल्चर और करियर ग्रोथ ऑप्शन खासे आकर्षक हैं।
कनाडा का पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट (PGWP) स्कीम तीन साल तक की वैलिडिटी देती है, जो पूर्णकालिक कोर्स की लंबाई पर निर्भर करती है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि कनाडा एक्सप्रेस एंट्री के तहत सीधे पीआर आवेदन का रास्ता खोल देती है। साथ ही टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और इंजीनियरिंग जैसी सेक्टर्स में अच्छी मांग और औसत से ऊपर सैलरी भी उपलब्ध है, जिससे जागीर मिलते ही स्थायी निवास की संभावनाएं मजबूत हो जाती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में 485 वीजा के तहत दो स्ट्रीम्स आती हैं: ग्रैजुएट वर्क स्ट्रीम (दो साल) और पोस्ट-स्टडी वर्क स्ट्रीम (मास्टर्स पर चार साल तक)। यहां का लचीला लेबर मार्किट और विविध उद्योग युवाओं को वर्क एक्सपीरियंस हासिल करने में मदद करते हैं। न्यूजीलैंड में लेवल-7 से ऊपर की डिग्री हो तो तीन साल तक ओपन वर्क वीजा मिल जाता है, जो देश की कम भीड़-भाड़ और हाई क्वालिटी ऑफ़ लाइफ के साथ अच्छी जॉब स्कोप भी देता है।
जहां तक तुलना की बात है, कनाडा की वीजा अवधि, पीआर प्रोसेस की पारदर्शिता और रोजगार के अवसर इसे सबसे मजबूत विकल्प बनाते हैं। ब्रिटेन अपनी शॉर्ट-टर्म ग्रेजुएट वीजा के साथ प्रीमियम इमेज बनाए रखता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया-अनुशासनिक कोर्स वाले स्टूडेंट के लिए लंबे रुकने के अवसर देते हैं। न्यूजीलैंड अपनी अधिक रचनात्मक वर्क-लाइफ बैलेंस के चलते नए अनुभव तलाशने वालों को लुभाता है। अंततः आपके करियर गोल, बजट और लॉन्ग-टर्म प्लानिंग पर निर्भर करेगा कि कौन सा प्रोग्राम आपके लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होगा।

