अमेरिका की विश्वविख्यात शिक्षा प्रणाली ने दशकों से विदेशी छात्रों को आकर्षित किया है, लेकिन हाल की नीतियों ने हजारों आवेदनकर्ता युवा दिमागों के लिए दरवाजा बंद कर दिया है। एडमिशन मिलने के बावजूद वीजा प्रक्रियाओं में नई शर्तों और यात्रा प्रतिबंधों ने छात्र समुदाय में असमंजस और निराशा का माहौल बना दिया है।
इन नए निर्देशों के तहत लगभग 19 देशों के विद्यार्थी अपना सफर शुरू होने से पहले ही रोक दिए गए हैं। वीजा स्लॉट सीमित कर दिए गए हैं और अस्थायी यात्रा परमिट पर नई कड़ी शर्तें लागू की गई हैं। परिणामस्वरूप, जिन छात्रों ने महीनों की मेहनत से प्रवेश परीक्षा पास की और फीस जमा की, उन्हें अब आशा-निराशा के चक्र में रखा गया है।
इस कदम का शैक्षिक क्षेत्र पर व्यापक असर देखा जा रहा है। विविधता में कमी से कक्षाओं का बहुरंगी अनुभव कम होगा, शोध में अंतरराष्ट्रीय सहयोग घटेगा और अमेरिकी विश्वविद्यालयों की अकादमिक गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। युवा प्रतिभाएं उन अवसरों की तलाश में दूसरे देशों की ओर रुख कर रही हैं, जिससे अमेरिका की ग्लोबल लीडरशिप को चुनौती मिल रही है।
व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखें तो यह नीति वैश्विक सौहार्द्र और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के सिद्धांतों के विपरीत जाती है। आर्थिक दृष्टि से भी उच्च छात्र शिक्षण शुल्क और जीवन व्यय का नुकसान अमेरिकी शैक्षिक संस्थानों को उठाना पड़ेगा। दूसरी तरफ कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इन प्रतिभाओं को खुले हाथों से स्वागत कर रहे हैं, जो लंबे समय में दुरस्थ प्रभाव पैदा कर सकता है।
समाप्ति में कहा जा सकता है कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र की नींव होती है और वैश्विक मार्ग प्रतिबंध इसे कमजोर कर रहे हैं। नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे छात्र आवाज़ को सुनें और ऐसी व्यवस्थाएं बनाएं जो न सिर्फ प्रवेश को आसान बनाएं, बल्कि आत्मविश्वास बहाल करके अमेरिका को शैक्षिक केंद्र बनाए रखें। तभी हम अपने विश्वविद्यालयों को भविष्य के शिखर तक पहुंचाने का सपना साकार कर सकेंगे।

