जयपुर उच्च न्यायालय ने हाल ही में उस गठजोड़ पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है, जहां नकली स्कूल और कोचिंग संस्थान मिलकर छात्रों को गुमराह कर रहे थे। इस निरीक्षण में अदालत ने इसे शिक्षा व्यवस्था का एक बड़ा दाग़ करार दिया और इसे बेनकाब करने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की।
न्यायालय ने निर्देश दिया है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) एवं राजस्थान बोर्ड को संयुक्त रूप से एक विशेष जांच दल (SIT) गठित कराना चाहिए, जो बिना पूर्व सूचना के संस्थानों का निरीक्षण करे। इस प्रक्रिया से उन भ्रामक आदान-प्रदानों का पता चलेगा, जो लक्ष्य के बजाय केवल वसूली तथा फर्जी दाखिले के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं।
सरकार और शिक्षा मण्डल द्वारा समयबद्ध कार्रवाई न होने के चलते विद्यार्थियों का हित लगातार अनदेखा होता रहा है। कई अभिभावक उम्मीदों के धन्धे में फंसे बच्चों की पढ़ाई का बोझ बढ़ते देख तनावग्रस्त हैं, जबकि कुछ संस्थान केवल नाम की मोहताज बने हैं और गुणवत्ता का दायित्व उठाने से कतराते दिखते हैं।
यह मामला शिक्षा में पारदर्शिता एवं जवाबदेही की कमी की ओर इशारा करता है। यदि बोर्ड सख्ती से निगरानी करें और डिजिटल रजिस्ट्रेशन, समय-समय पर रिपोर्टिंग व पब्लिक पोर्टल पर खुला डैटा उपलब्ध कराएं, तो इस तरह के दुरुपयोग पीछे रह सकते हैं। साथ ही स्थानीय समाज और शिक्षाविदों को भी सक्रिय भागीदारी निभानी होगी, ताकि कोई व्यवस्था खोखली न रह जाए।
निष्कर्षतः, अदालत की चेतावनी सिर्फ कानूनी शब्दों में सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इस पर ठोस प्रतिक्रिया देना हम सभी का दायित्व है। सही दिशा में उठाया गया कदम न केवल छात्रों का हक़ सुरक्षित करेगा, बल्कि देश के शैक्षिक ढांचे को भी मजबूती देगा।

