FAIMA के “रिव्यू मेडिकल सिस्टम सर्वे” ने एक डरावना सच उजागर किया है: देश के 10 में से 9 मेडिकल कॉलेज खस्ताहाल हालत में हैं और करीब 40% मेडिकल छात्र प्रतिकूल माहौल में पढ़ाई और प्रैक्टिकल करने को बाध्य हैं। इस सर्वे रिपोर्ट ने न सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी पर प्रकाश डाला, बल्कि उस मानसिक बोझ को भी रेखांकित किया, जो भविष्य के डॉक्टरों पर मंडरा रहा है।
अधूरी प्रयोगशालाएं, पर्याप्त ड्यूटी रूम का अभाव, अकार्यक्षम इमरजेंसी सुविधाएं और अपडेटेड मेडिकल इक्विपमेंट की कमी जैसी समस्याएं बिगड़ते मेडिकल कॉलेज सिस्टम की हकीकत बयां करती हैं। फैकल्टी का आंकलन कम होना और रिसर्च ग्रांट न मिलने से केवल शिक्षा का स्तर नहीं गिर रहा, बल्कि छात्रों का आत्मविश्वास भी टूट रहा है।
ऐसे में एक युवा डॉक्टर के सामने जला-भुना रिकॉर्ड देखकर वास्तविक जीवन में काम करना आसान नहीं होता। 40% छात्र इन बाधाओं के चलते तनाव, अनिद्रा और नैदानिक अभ्यास में कमी का सामना कर रहे हैं। इससे सिर्फ उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं हो रही, बल्कि आने वाले समय में मरीजों की सुरक्षा पर भी गंभीर असर पड़ेगा।
परीक्षकों, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं को मिलकर कमियों का निदान करना होगा। बजट आवंटन में पारदर्शिता, आधुनिक उपकरणों की आपूर्ति और कार्यशाला-प्रशिक्षण सत्रों का विस्तार करने से सिस्टम में सुधार संभव है। निजी क्षेत्र को भी उत्साह के साथ इन प्रयासों में भागीदारी करनी चाहिए, ताकि युवा चिकित्सकों को एक सुदृढ़ मंच मिल सके।
नतीजतन, मेडिकल शिक्षा में वर्तमान जर्जरता के खिलाफ आवाज उठाना ज़रूरी है। अगर हम आज सुधार के बीज नहीं बोएंगे, तो आने वाले कल में न तो शिक्षित डॉक्टरों की तलाशी खत्म होगी और न ही मरीजों की उम्मीदें पूरी हो पाएंगी। सामूहिक प्रयास ही इस सूबे को विश्वास दिला सकता है कि उसका मेडिकल सिस्टम सुरक्षित और सक्षम है।

