एक दशक पहले, अमेरिका में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करना किसी भी विद्यार्थी के लिए सुनहरा पासपोर्ट माना जाता था। सिलिकॉन वैली से लेकर वॉल स्ट्रीट तक, हर जगह प्रतिभाशाली इंजीनियरों की कमी थी। अच्छे वेतन पैकेज, ग्लोबल प्रोजेक्ट और स्थिर कैरियर ग्रोथ — ये सारे सपने अक्सर इस कोर्स से जुड़कर ही पूरे होते दिखते थे। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह सपना जल्द ही सवालों के घेरे में आ जाएगा।
आज का दृश्य कुछ बदला-बदला है। टेक इंडस्ट्री में कटौती, ओवरसप्लाई ऑफ ग्राजुएट्स और ऑटोमेशन टेक्नोलॉजीज के आने से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग की मांग में गिरावट आई है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी की बढ़ती फीस और वीज़ा नियमों की कड़ाई ने विदेशी छात्रों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस बदलती माहौल ने युवा इंजीनियरों को रोकने के बजाय उन्हें बेरोजगारों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है।
मेरी नज़र में, समस्या सिर्फ कोर्स की लोकप्रियता या फीस की ऊँचाई में नहीं है। असल मुद्दा यह है कि कई यूनिवर्सिटीज़ ने मार्केट रिसर्च की अनदेखी कर के स्नातकों की संख्या बढ़ा दी। साथ ही, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड कम्प्यूटिंग जैसी नयी टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता न लेने वाले इंजीनियर मार्केट में टिक नहीं पा रहे।
इस पूरे परिदृश्य में विद्यार्थियों को आत्मनिरीक्षण करना ज़रूरी है। क्या मैंने अपने कौशल को अपडेट किया? क्या मेरी स्पेशलाइजेशन मार्केट-ड्रिवन है? लड़ाई सिर्फ डिग्री की नहीं, बल्कि सही स्किल सेट, अनुभव और नेटवर्किंग की भी है। कुछ छात्र माइक्रोसर्विस आर्किटेक्चर या साइबर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनकर अपनी संभावनाएं बढ़ा रहे हैं, जबकि केवल बुनियादी कोर्स लेकर आगे बढ़ना जोखिम भरा साबित हो रहा है।
निष्कर्षतः, अमेरिका में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग अभी भी अवसर देती है, लेकिन सिर्फ डिग्री भर हासिल करना पर्याप्त नहीं है। बदलते बाजार की डिमांड, स्पेशलाइजेशन और आत्म-अध्ययन को प्राथमिकता दें। अगर आप इन कारकों पर ध्यान देंगे, तो ‘अमेरिकन ड्रीम’ आपका पीछा नहीं छोड़ेगी।

