एच-1बी वीजा ने लंबे समय तक विदेशी टेक और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका में करियर बनाने का सबसे भरोसेमंद मार्ग माना गया। भारतीय और अन्य देशों के आईटी इंजीनियर, डेटा एनालिस्ट और मेडिकल स्पेशलिस्ट H-1B वीजा के जरिए अमेरिकी कंपनियों में काम के अवसर बटोरते रहे हैं। लेकिन हाल ही में वीजा फीस में भारी वृद्धि और सख्त नियमों ने इस सपने को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
डोनाल्ड ट्रंप सरकार द्वारा वीजा फीस को करीब 1 लाख डॉलर तक बढ़ाने के बाद कई बड़ी कंपनियों ने अपने विदेशी कर्मचारियों के लिए वीजा स्पॉन्सरशिप रोक दी है। वॉलमार्ट, आईबीएम और कुछ हेल्थकेयर फर्मों ने इस कदम के पीछे लागत और लेनदेन की जटिलता को प्रमुख कारण बताया है। कंपनियों का कहना है कि नए चार्जेज और प्रोसेसिंग टाइम उनके बजट तथा प्रोजेक्ट डेडलाइन्स को प्रभावित करते हैं।
इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी वर्कर्स पर पड़ेगा, क्योंकि H-1B ही उनका प्रमुख प्रवेश द्वार रहा है। नई पॉलिसी से न केवल आवेदन की संख्या कम होगी, बल्कि इससे जुड़ी अनिश्चितता भी बढ़ेगी। कई स्टार्टअप और मध्य आकार की कंपनियां ऐसे खर्च उठा पाने में असमर्थ दिख रही हैं, जिससे हायरिंग में गिरावट आएगी और प्रतिभाशाली प्रोफेशनल्स को बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।
मेरी नजर में, कंपनियों को इस फैसले पर पुनर्विचार करते हुए वैकल्पिक मॉडल अपनाने चाहिए, जैसे कि रिमोट वर्क, ग्लोबल आउटसोर्सिंग या कनाडा व यूरोप जैसे देशों में ऑफिस खोलना। इससे कर्मचारी को स्थिरता मिलेगी और कंपनी को लागत नियंत्रण का अवसर भी। भारत में भी इन बदलावों को देखते हुए टेक इंडस्ट्री को अपनी रणनीतियाँ ढालनी होंगी ताकि स्थानीय टैलेंट को बेहतरीन अवसर मिलते रहें।
निष्कर्षतः, H-1B वीजा स्पॉन्सरशिप पर ब्रेक विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन साथ ही यह कंपनियों और उम्मीदवारों को नए विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित करेगा। भविष्य में विविध वर्क मॉडल और अंतर्राष्ट्रीय कौशल आदान-प्रदान से शायद इस खाई को पाटने में मदद मिलेगी।

