कनाडा लंबे समय से उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों का पसंदीदा गंतव्य रहा है। आकर्षक पाठ्यक्रम, सुरक्षित वातावरण और बाद में इमिग्रेशन की संभावना ने लाखों अभिभावकों का दिल जीत लिया। हालांकि, हाल के वर्षों में परिस्थितियों में जबरदस्त बदलाव देखने को मिले हैं, जिसने कई परिवारों को चिंता में डाल दिया है।
सबसे पहले, आर्थिक अनिश्चितता ने स्थिति को जटिल बना दिया है। ट्यूशन फीस, रहने-खाने का खर्च और स्वास्थ्य बीमा पर होने वाले भारी बिल ने छात्रों और उनके सहयोगी अभिभावकों की जेब पर बड़ा दबाव डाला है। बढ़ती महंगाई और स्कॉलरशिप की कमी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई कनाडा में पढ़ाई का निवेश वांछित रिटर्न दे पाएगा?
दूसरी ओर, शिक्षा क्षेत्र में नियमित नियम परिवर्तन और वर्क परमिट की नई शर्तों ने कई विशेषज्ञों को यह सलाह देने पर मजबूर कर दिया है कि अभिभावक बच्चों को कनाडा भेजने से पहले गहराई से स्थिति समझें। काम मिलने की दर में आई गिरावट, स्थानीय रोजगार बाजार में प्रतिस्पर्धा और प्रैक्टिकल अनुभव के अवसरों का सीमित होना युवा छात्रों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन चुका है।
सामाजिक स्तर पर भी चुनौतियां हैं। भाषा की बाधा, सांस्कृतिक अंतर और कभी-कभी भेदभाव की घटनाओं ने कई नए आगंतुकों की मनोस्थिति पर असर डाला है। भारतीय समुदाय के बढ़ते प्रभाव के बावजूद, अलग-थलग पड़ने का डर खत्म नहीं हुआ है। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि परिवार ऑनलाइन फोरम और सोशल ग्रुप्स के जरिए अपडेटेड जानकारी जुटाएं और आपसी अनुभव साझा करें।
निष्कर्षतः, कनाडा में पढ़ने का सपना आज भी आकर्षक है, लेकिन यह निर्णय लेने से पहले वास्तविक खर्च, नौकरी की संभावनाएं और सामाजिक समर्थन को परखना अनिवार्य हो गया है। मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि परिवार बच्चों के मकसद, वित्तीय स्थिति और इमिग्रेशन प्लान को ध्यान में रखकर विस्तृत रिसर्च करें और विशेषज्ञों से राय लें। तभी सही मायनों में यह कदम फायदेमंद साबित होगा।

