पिछले कुछ महीनों में अमेरिका में H-1B वीजा होल्डर्स के खिलाफ उपेक्षा और तिरस्कार का ग्राफ तेजी से चढ़ा है। कई भारतीय पेशेवरों ने सोशल मीडिया पर साझा किया कि उन्हें बिना किसी स्पष्ट कारण के कटु ट्वीट्स, घृणा भरे कमेंट्स और अकारण संदेह का सामना करना पड़ा। यह साफ़ संकेत है कि नहीं की गई चीज़ों पर भी आरोप लगाने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
सामाजिक प्लेटफॉर्म पर वायरल होने वाले वीडियो और मेसेज अक्सर स्टीरियोटाइप्स को ही पुष्ट करते दिखते हैं: ‘विदेशी कामगार निज़ीकरण लेते हैं’, ‘अमेरिकी नौकरियाँ छीनते हैं’ जैसी बातें सुनकर कई बार मन मटमैला हो जाता है। असल में यह डर नहीं, अज्ञानता और असुरक्षा का परिणाम है, जहां लोग अपनी समस्याओं के लिए बहाना तलाशते हैं।
एक भारतीय मैनेजर ने हाल ही में बताया कि उसका टीम लीडर उनसे व्यक्तिगत तौर पर भेदपूर्ण बर्ताव कर रहा है, केवल इसलिए कि वे H-1B पर काम करते हैं। उसे अफसोस है कि उसने कोई ऐसा कृत्य नहीं किया जिसकी सज़ा इतनी ज़्यादा भावुक कट्टरता में दी जा रही हो। इस तरह का अनुभव मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है और काम में उत्साह कम कर देता है।
अगर हम व्यापक दृष्टिकोण अपनाएँ तो समझेंगे कि भेदभाव से अमेरिका के टेक सेक्टर की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं। विविधता और समावेशिता की बातें छोड़कर अगर किसी ने अपने देश के नागरिकों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया तो नई प्रतिभाएँ बाहर देखने को बाध्य हो जाएंगी। इससे न केवल कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर सहयोग भी प्रभावित होगा।
नफ़रत के इस चक्र को तोड़ने के लिए हमें संवाद और समझ बढ़ाने की ज़रूरत है। सोशल मीडिया पर सच्ची जानकारी साझा करें, स्टीरियोटाइप्स की चुनौती दें और साथी H-1B होल्डर्स को समर्थन दें। अंततः बदलाव तब आएगा जब हम भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाएँ और मानवाधिकार की एक हरियाली लौटाएँ।

