H-1B वर्कर्स की अस्थिरता: अमेरिका में नौकरी का भरोसा कहाँ?

H-1B वर्कर्स की अस्थिरता: अमेरिका में नौकरी का भरोसा कहाँ?

अमेरिका में H-1B वीजा एक सुनहरा अवसर माना जाता है, जिसने लाखों भारतीय पेशेवरों को टेक और फाइनेंस जैसी उभरती इंडस्ट्री में काम करने का मौका दिया है। यह वीजा विश्व की सबसे लोकप्रिय वर्क परमिट स्कीमों में शुमार है, लेकिन हालिया घटनाएँ दिखाती हैं कि सपनों की इस राह में उतार-चढ़ाव भी कम नहीं हैं।

एक भारतीय इंजीनियर ने अमेरिका पहुंचने के सिर्फ एक महीने बाद अपनी नौकरी खो दी, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या कंपनियाँ वाकई वफादार होती हैं या सिर्फ अल्पकालीन फायदा देखकर ही कर्मचारियों को हायर-फायर पॉलिसी के सहारे काम पर रखती हैं। इस मामले में H-1B वर्कर को बिना वॉर्निंग के बतौर कटौती टारगेट कर दिया गया, जो कि व्यापक layoffs की रणनीति का हिस्सा था।

मेरी नजर में, छंटनी के पीछे कई कारण हो सकते हैं: टेक्नोलॉजी में वित्तीय दबाव, प्रोजेक्ट प्रायरिटीज का बदलना, या कभी-कभी स्थानीय कर्मचारियों को प्राथमिकता देना। इन परिस्थितियों में विदेशी वर्कर्स का बचाव नाममात्र का रह जाता है। कंपनियाँ खर्च कम करने के लिए जल्दी निर्णय ले लेती हैं और H-1B होल्डर्स को अनियंत्रित स्थिति में छोड़ देती हैं।

यह समस्या भारतीय वर्क फोर्स के लिए एक चेतावनी भी है कि अमेरिका में करियर बनाने से पहले वैकल्पिक योजनाएँ तैयार रखें। नेटवर्किंग, स्किल डेवलपमेंट और कानूनी विकल्पों की समझ बनाए रखें। H-1B वीजा प्राप्त करने का रास्ता लंबा है, लेकिन उतनी ही सजगता से अपने करियर की दिशा भी तय करनी चाहिए।

निष्कर्षतः, अमेरिकी कंपनियों की वफादारी पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है। H-1B विज़ा होल्डर के रूप में हमें लगातार अपडेट रहते हुए अपनी वैल्यू बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। केवल वीजा पर निर्भर ना रहकर अपनी पेशेवर क्षमता को मजबूत करना ही दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है।

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