अमेरिका में H-1B वीजा के सहारे अपने करियर को ऊँचाइयों पर ले जाने का सपना देखना भारतीय युवाओं के लिए आम बात हो गई है। लाखों भारतीय इस वीजा के जरिए वहाँ के आईटी सेक्टर और अन्य उद्योगों में काम कर रहे हैं। पर इन चमकदार अवसरों के पीछे एक अंधेरा सच भी छिपा है, जहाँ वर्कर्स को वीजा का डर दिखाकर जबरदस्ती लम्बी शिफ्टों पर और असुरक्षित परिस्थितियों में काम करवाया जाता है।
एक भारतीय इंजीनियर ने अपने अनुभव साझा किए, जिसमें उसने बताया कि कंपनी ने सैलरी रोकने और वीजा रद्द करने की धमकी देकर काम के घंटे दोगुने कर दिए। छुट्टी लेना तो वह भूल ही जाए, और शिकायत करने पर HR विभाग सिर्फ कानूनी जटिलताओं का हवाला देता रहा। वह युवक हर रोज़ मानसिक दबाव और शारीरिक थकान के बीच संघर्ष करता रहा, क्योंकि उसके पास लौटने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
यह मामला केवल एक कहानी नहीं, बल्कि सिस्टम में मौजूद गहरे असमान संतुलन की तरफ इशारा करता है। वीजा होल्डर पूरी तरह से नियोक्ता पर निर्भर हो जाते हैं, जिससे वे शोषण का शिकार बनते हैं। अमेरिका की श्रम कानून व्यवस्था में कुछ छिद्र ऐसे हैं जो इन कंपनियों को वर्कर्स की हक़ीक़तों को दबाने का मौका देते हैं। हमें समझना होगा कि वीजा सिस्टम को सिर्फ कागज़ी प्रक्रिया न मानकर इसका विस्तारिक अध्ययन जरूरी है।
मेरी नजर में, इस समस्या का समाधान बेहतर नियामक निगरानी और वर्कर्स की जागरूकता में निहित है। भारतीय वर्कर्स को अपने अधिकारों, कानूनी सहायता और श्रम संगठनों के कॉन्टैक्ट की जानकारी पहले से जुटानी चाहिए। इसके अलावा, दोनों देशों को मिलकर ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए जो वर्कर्स की सेफ़्टी और वाजिब वेतन सुनिश्चित करें, ताकि किसी के साथ भी ऐसी मनमानी न हो सके।
अंततः हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि विदेशी अवसरों का लालच व्यक्ति को अकेला और असहाय नहीं करना चाहिए। जब तक वीजा होल्डर्स को कानूनी और सामूहिक सपोर्ट नहीं मिलेगा, तब तक यह शोषण जारी रहेगा। इसलिए, नियोक्ता, सरकार और वर्कर्स—तीनों को मिलकर एक पारदर्शी और सुरक्षित माहौल तैयार करना होगा, जिसमें कोई भी अपना हक़ खोने का डर न उठाए।

