विश्वविद्यालयों को एक समाज की प्रगति और नवाचार का प्रमुख केंद्र माना जाता है। गाजा पट्टी में उच्च शिक्षा के जो संस्थान सदियों से ज्ञान का खजाना रहे हैं, वहां हाल ही में उत्पन्न भयावह स्थिति ने शिक्षा के महत्व को फिर से उभारकर सामने रखा है। एक ओर जहां छात्र-छात्राएं विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अपने भविष्य का निर्माण कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर अचानक आई हिंसा ने उन्होंने तमाम आशाओं को ध्वस्त कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गाजा की 38 में से 22 विश्वविद्यालय बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त, पुस्तकालय विध्वंसित और प्रयोगशालाएँ ध्वस्त हो चुकी हैं। ये आंकड़े न केवल दीवारों की टूट-फूट को दर्शाते हैं, बल्कि उन हजारों छात्रों के टूटते सपनों का सूचक भी हैं, जो रोज़ यह उम्मीद लेकर कक्षाओं में बैठते थे।
इस त्रासदी का सीधा असर छात्र जीवन पर पड़ा है। शिक्षकों का पलायन, शैक्षणिक सामग्री का अभाव और लगातार बढ़ती असुरक्षा की भावना ने समुदाय में निराशा फैला दी है। कई अंतर्राष्ट्रीय छात्र वापस लौट गए, वहीं स्थानीय छात्रों के परिवार आर्थिक एवं मानसिक संकट में घर बैठे हैं। यूनेस्को ने भी इस तबाही की निंदा करते हुए पुनर्निर्माण के लिए आपात कोष की घोषणा की है, लेकिन जल्द कार्रवाई की मांग लगातार उठ रही है।
युद्ध का शिक्षा पर गहरा असर दीर्घकालिक होगा। गाजा की अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर थी, अब बेरोज़गारी और अकुशल श्रमिकों की संख्या और बढ़ेगी। शोध एवं नवाचार के अवसर ठंडे बस्ते में चले जाएंगे, जिससे वैश्विक स्तर पर भी ज्ञान के आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न होगी। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय संगठनों और संपन्न राष्ट्रों की जिम्मेदारी बनती है कि वे न केवल वित्तीय मदद दें, बल्कि व्यापक पुनर्निर्माण योजनाएँ भी संचालित करें।
निष्कर्षतः, गाजा की इस शिक्षा संबंधी मानवता हानि ने हमें याद दिलाया है कि युद्ध सिर्फ मलबे ही नहीं छोड़ता, बल्कि पीढ़ियों के सपनों को भी मसल देता है। अब वैश्विक समुदाय को मिलकर इस शैक्षणिक विध्वंस को रोकने, पुनर्निर्माण के लिए ठोस कदम उठाने और गाजा के युवाओं को फिर से अपने भविष्य का उज्जवल खाका गढ़ने का अवसर देना होगा। तभी यह क्षेत्र फिर से शिक्षा का प्रकाश घर-घर तक फैला सकेगा।

