दतिया के पीतांबरा माई इलाके में कांग्रेस के पूर्व पार्षद और नोटरी ने आत्महत्या कर ली, जिससे पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई। उनके इस आकस्मिक फैसले ने स्थानीय राजनीति और समाज में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह दुखद घटना उस समय प्रकाश में आई जब आत्महत्या का एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने अपने ऊपर हुई मनोवैज्ञानिक पीड़ा का जिक्र किया।
सुसाइड नोट में उन्होंने सीधे तौर पर एक बैंककर्मी का नाम लिया और आरोप लगाया कि उसने उनसे फर्जी शपथ-पत्र बनवाकर लोन हासिल किया। इस प्रक्रिया ने पूर्व पार्षद को आर्थिक और नैतिक दोनों ही दृष्टियों से परेशान कर दिया था। उन्होंने बताया कि बैंककर्मी की साजिश के कारण वे लगातार तनाव में थे और अंततः अपना जीवन खत्म करने का निर्णय लिया।
एक सक्षम नोटरी होने के नाते उनके कंधों पर लोगों के दस्तावेज सत्यापित करने का दायित्व था, लेकिन इस भरोसे का दुरुपयोग हो गया। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि कैसे कानून और व्यवस्था के बीच चूक होने पर आम लोग भी शिकार बन सकते हैं। पूर्व पार्षद के मामले ने यह दिखाया कि सिस्टम की दरारें कितनी घातक साबित हो सकती हैं।
दतिया में बढ़ते अपराध की चिंता सार्वजनिक हो चुकी है, जहां हाल ही में कई मामलों ने सुर्खियां बटोरीं। इस बीच, नरोत्तम मिश्रा, जो पूर्व गृह मंत्री रह चुके हैं, को भी इस मामले पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और प्रशासन से आग्रह करना चाहिए कि वे जांच में पारदर्शिता बनाएं और दोषियों को शीघ्र न्याय दिलाएं।
यह दुखद अंत हमें याद दिलाता है कि मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय दोनों का ध्यान रखना कितना आवश्यक है। कोर्ट एवं बैंकिंग सिस्टम में पारदर्शिता लाकर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है। पूर्व पार्षद की आत्महत्या ने हमें चेतावनी दी है कि अगर हम लोगों की आशंकाओं और पीड़ा पर संवेदनशीलता नहीं दिखाएंगे, तो और भी जीवन अधूरे रह जाएंगे।

