मैरवा की मिट्टी से फुटबॉल मैदान तक: संजय मास्टर की नायाब पहल

मैरवा की मिट्टी से फुटबॉल मैदान तक: संजय मास्टर की नायाब पहल

हर साल शिक्षक दिवस पर हम शिक्षकों को सम्मान देते हैं, लेकिन बिहार के सिवान जिले के मैरवा में रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स अकादमी चलाने वाले संजय पाठक ने इस दिन को अलग ही मायने दिए हैं। उन्होंने कमजोर और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार की लड़कियों को खेल के माध्यम से सशक्त बनाने का बीड़ा उठाया है। फुटबॉल और हैंडबॉल जैसी खेल विधाओं में प्रशिक्षण देकर वे इन बच्चियों की सोच और आत्मविश्वास को नए आयाम दे रहे हैं।

रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स अकादमी का मकसद सिर्फ खेल सिखाना नहीं है, बल्कि जीवन के संघर्षों का सामना करने के लिए लड़कियों में आत्मनिर्भरता पैदा करना भी है। यहां प्रशिक्षण मुफ्त है और हर महीने व्यायामशाला, खेल उपकरण तथा पोषण संबंधी सपोर्ट भी दिया जाता है। संजय मास्टर खुद खेतों से आने वाली इन बच्चियों को सुबह-शाम अभ्यास करते देख हौंसला बढ़ाते हैं और उन्हें कभी हार न मानने का पाठ पढ़ाते हैं।

अकादमी में शामिल युवतियों की कहानी इस बात का प्रमाण है कि खेल शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है। आर्थिक तंगी के बावजूद जब गीता, ललिता और श्रुति जैसे छात्राएं सफलता के लिए मैदान पर खड़ी होती हैं, तो उनके भीतर की ऊर्जा और जोश जग जाता है। ना सिर्फ उनके फिजिकल फिटनेस में सुधार हुआ है, बल्कि टीम वर्क, अनुशासन और लीडरशिप के गुण भी निखरे हैं। इससे उनके घर वाले भी गर्व महसूस करने लगे हैं और कई परिवार अब अपनी बेटियों के उज्जवल भविष्य पर विश्वास रखने लगे हैं।

मेरी नजर में संजय पाठक की यह पहल शिक्षा और खेल को गाँव की मिट्टी से जोड़ने वाली मिसाल है। आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में सिर्फ पढ़ाई-लिखाई ही जरूरी नहीं, आत्मविश्वास और सहयोग की भावना भी अहम है। मैरवा की इस अकादमी ने साबित किया कि जब अवसर और संसाधन सही दिशा में दिए जाएँ, तो कोई भी लड़का या लड़की अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है। इसे अगर व्यापक स्तर पर दोहराया जाए, तो समाज में लैंगिक समानता और बालिका शिक्षा को बल मिलेगा।

शिक्षक दिवस पर हमें संजय मास्टर जैसे अनोखे अध्यापकों का सम्मान करना चाहिए, जो केवल पाठ्यपुस्तक तक सीमित नहीं रहते बल्कि जीवन की पाठशाला में भी मार्गदर्शन देते हैं। रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स अकादमी की सफलता यही संदेश देती है कि खेल के मैदान में पांव जमाना, आत्मविश्वास जगाना और नए सपने संजोना किसी भी बच्चे के भविष्य को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित कर सकता है। आइए, हम सब मिलकर ऐसी पहलों को प्रोत्साहित करें और हर लड़की के चेहरे पर आत्मसम्मान की मुस्कान लाएं।

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