आज के चिकित्सा युग में हमने कई घातक बीमारियों पर विजय पाई है, लेकिन इलाज की लागत अक्सर सामान्य कल्पना से परे होती है। कुछ दवाइयाँ इतनी महंगी होती हैं कि उनकी एक मात्र खुराक की कीमत सुनकर ही होश उड़ जाते हैं। इस ब्लॉग में हम दुनिया की सबसे महंगी दवा के पीछे की कहानी, उसके महत्व और मूल्य निर्धारण की चुनौतियों पर एक नज़र डालेंगे।
दुनिया की सबसे महंगी दवा का नाम है Zolgensma, जो स्पाइनल मस्कुलर ऐट्रोफी (SMA) नामक दुर्लभ तंत्रिका–मांसपेशी रोग के इलाज के लिए जीन थेरेपी के रूप में दी जाती है। यह एक बार की इंट्रावेनीअस खुराक होती है, लेकिन इसकी कीमत लगभग 16 करोड़ रुपये (करीब 2.1 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के आसपास होती है। केवल एक ही उपचार से जीवन की गुणवत्तामें आश्चर्यजनक सुधार देखने को मिलता है।
इस दवा की कीमत इतनी ऊंची होने के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले, जीन थेरेपी विकसित करना वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत जटिल और जोखिम भरा होता है। शोध एवं क्लीनिकल परीक्षणों में अरबों रुपये व्यय हो जाते हैं। साथ ही, SMA जैसी दुर्लभ बीमारियों के मरीजों की संख्या कम होने के कारण कंपनी को उत्पादन लागत को पूरे अनुमानित मरीज वर्ग पर समान रूप से वितरित नहीं करना पड़ता, जिससे मूल्यवृद्धि होती है।
जहां एक ओर यह इनोवेशन लाखों परिवारों को नयी उम्मीद देता है, वहीं दूसरी ओर महंगी कीमतें उपचार को सुलभ बनाने में बड़ी बाधा बन जाती हैं। बीमा कंपनियाँ और सरकारें कीमत पर बातचीत करती हैं, लेकिन अधिकांश मरीज़ों के लिए यह खर्च असंभव रहता है। कई गैरसरकारी संस्थाएँ सब्सिडी या वित्तीय सहायता देती हैं, फिर भी न्यायसंगत और टिकाऊ समाधान की कमी महसूस होती है।
निष्कर्षतः, Zolgensma जैसे जीन थेरेपी अवश्य चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति लाते हैं, लेकिन उनकी आर्थिक व सामाजिक जिम्मेदारियों पर भी गंभीर चिंतन आवश्यक है। हमें ऐसे वित्तीय और नियामक ढाँचे की दिशा में काम करना होगा, जहाँ नवाचार को प्रोत्साहन मिले और साथ ही हर जरूरतमंद तक उचित मूल्य पर इलाज पहुँच सके। तभी असली स्वास्थ्य क्रांति संभव होगी।

