तेलंगाना हाईकोर्ट ने 7 जुलाई 2025 को ग्रुप-1 रैंकिंग सूची रद्द करने का जो फैसला सुनाया है, वह राज्य के सिविल सेवा अभ्यर्थियों के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। अदालत ने पाया कि तेलंगाना पब्लिक सर्विस कमीशन (टीजीपीएससी) की मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं थी और पेपर्स की दोबारा जांच (री-वैल्यूएशन) अनिवार्य कर दी है। यदि आठ महीनों के भीतर पुनर्मूल्यांकन संभव नहीं हुआ तो नई परीक्षा कराने का निर्देश भी दिया गया है।
ग्रुप-1 परीक्षा का परिणाम 10 मार्च 2025 को घोषित हुआ था, जिसमें हजारों युवा सरकारी सेवाओं की राह पर कदम रखना चाहते थे। हालांकि परिणाम आते ही कुछ अभ्यर्थियों ने जांच की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और असंतोष जताया। उनके दावों में पेपर क्रॉस-चेक में त्रुटि, स्कोरिंग में गड़बड़ी और आपत्तिजन्य मार्किंग के उदाहरण मौजूद थे, जो उच्च न्यायालय तक पहुंच गए।
न्यायमूर्ति नामवरपु राजेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने लंबी सुनवाई के बाद आयोग को पूरे मूल्यांकन को निष्पक्ष तरीके से दोबारा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया पूर्णतः पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि प्रत्येक छात्र के पेपर का आदर्श तरीके से मूल्यांकन हो और अनावश्यक देरी से बचा जा सके। कोर्ट ने जांच पूरी करने के लिए आयोग को मार्च 2026 तक का समय दिया है।
इस फैसले का सीधा प्रभाव उन अभ्यर्थियों पर पड़ेगा जो प्रारंभिक रिजल्ट में सफल घोषित हुए थे। अब उन्हें पुनर्मूल्यांकन के नतीजों की प्रतीक्षा करनी होगी, जिससे कैरियर योजनाओं में अनिश्चितता पैदा हो सकती है। दूसरी ओर, जो छात्र पिछले परिणाम से निराश थे उन्हें न्याय मिलने का आत्मविश्वास बढ़ेगा। यह संतुलन सरकारी परीक्षा प्रणाली में सुधार और परिणामों की विश्वसनीयता दोनों के बीच की चुनौती को दर्शाता है।
निष्कर्ष स्वरूप, यह कदम टीजीपीएससी में जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक संदेश भेजता है, लेकिन समयबद्ध तरीके से निर्णय पूरी तरह लागू करना भी उतना ही जरूरी है। भविष्य में टेक्नोलॉजी आधारित मूल्यांकन व्यवस्था अपनाकर परीक्षा प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जा सकता है। इससे न केवल अभ्यर्थियों का विश्वास मजबूत होगा बल्कि शिक्षा और सरकारी सेवा के मार्ग में गुणवत्ता सुनिश्चित होगी।

